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ए॒तं शर्धं॑ धाम॒ यस्य॑ सू॒रेरित्य॑वोच॒न्दश॑तयस्य॒ नंशे॑। द्यु॒म्नानि॒ येषु॑ व॒सुता॑ती रा॒रन्विश्वे॑ सन्वन्तु प्रभृ॒थेषु॒ वाज॑म् ॥

English Transliteration

etaṁ śardhaṁ dhāma yasya sūrer ity avocan daśatayasya naṁśe | dyumnāni yeṣu vasutātī rāran viśve sanvantu prabhṛtheṣu vājam ||

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Pad Path

ए॒तम्। शर्ध॑म्। धाम॑। यस्य॑। सू॒रेः। इति॑। अ॒वो॒च॒न्। दश॑ऽतयस्य। नंशे॑। द्यु॒म्नानि॑। येषु॑। व॒सुऽता॑तिः। र॒रन्। विश्वे॑। स॒न्व॒न्तु॒। प्र॒ऽभृ॒थेषु॑। वाज॑म् ॥ १.१२२.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:122» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (वसुतातिः) धन आदि ऐश्वर्य्ययुक्त मैं जैसे विद्वान् जन (यस्य) जिस (दशतयस्य) दश प्रकार की विद्याओं से युक्त (सूरेः) विद्वान् के सकाश से जिस (शर्द्धम्) बलयुक्त (धाम्) स्थान को (अवोचन्) कहें वा जो (विश्वे) सब विद्वान् (वाजम्) ज्ञान वा अन्न को (रारन्) देवें (येषु) जिन (प्रभृथेषु) अच्छे धारण किये हुए पदार्थों में (द्युम्नानि) यश वा धनों को (सन्वन्तु) सेवन करें (इति) इस प्रकार उस ज्ञान और (एतम्) इस पूर्वोक्त सब पदार्थों का सेवन कर दुःखों को (नंशे) नाश करूँ ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् मनुष्य पूर्ण विद्याओं को जाननेहारे समस्त विद्याओं को पाकर औरों को उपदेश देते हैं, वे यशस्वी होते हैं ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

वसुतातिरहं यथा विद्वांसो यस्य दशतयस्य सूरेः सकाशाद् यच्छर्द्धं धामावोचन्। ये विश्वे वाजं रारन् येषु प्रभृथेषु द्युम्नानि सन्वन्त्विति तदेतं सर्वं सेवित्वा दुःखानि नंशे ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (एतम्) पूर्वोक्तं सर्वं वस्तुजातम् (शर्द्धम्) बलयुक्तम् (धाम) स्थानम् (यस्य) (सूरेः) विदुषः (इति) अनेन प्रकारेण (अवोचन्) वदेयुः (दशतयस्य) दशधा विद्यस्य (नंशे) अदर्शयेयम् (द्युम्नानि) यशांसि धनानि वा (येषु) (वसुतातिः) धनाद्यैश्वर्य्ययुक्तः (रारन्) दद्युः (विश्वे) सर्वे (सन्वन्तु) संभजन्तु (प्रभृथेषु) (वाजम्) ज्ञानमन्नं वा ॥ १२ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विपश्चितो मनुष्याः पूर्णविद्याविदोऽखिला विद्याः प्राप्यान्यानुपदिशन्ति ते यशस्विनो भवन्ति ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी विद्वान माणसे पूर्ण विद्या जाणणारी असतात व संपूर्ण विद्या प्राप्त करून इतरांना उपदेश करतात ती यशस्वी होतात. ॥ १२ ॥